कटहल की खेती ज्यादातर भारत के केरला और तमिल नाडू क्षेत्र में की जाती है। कटहल को इंग्लिश में जैकफ्रूट के नाम से जाना जाता है। कटहल का पौधा सदाबहार माना जाता है। कटहल में पौष्टिक तत्व पाए जाते हैं ,जो हमारे शरीर के लिए बेहद लाभकारी होते है।
कटहल के वृक्ष की लम्बाई 8-15 मीटर तक होती है। कटहल के वृक्ष में फल लगना बसंत ऋतू से शुरू होता है ,और वर्षा ऋतू तक ये फल देता है। कटहल का वृक्ष छोटा और मध्यम फैलावदार होता है।
कटहल को सब्जी के लिए उपयुक्त माना जाता है। कटहल के वृक्ष पर सालाना 80-90 फल प्रति वर्ष लगते है। इसके फल दिखने में गहरे हरे रंग और गोल आकर के रहते हैं।
कटहल का बीज वाला भाग मुलायम होता है। इसके फल पकने में लम्बा समय लेते हैं , इसी कारण कटहल का लम्बे समय तक सब्जी के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
कटहल का पौधा यदि आप लगाने की सोच रहे हैं ,तो सबसे पहले कटहल के पके हुए फल को ले। पके हुए फल में से बीजो को निकाल लें। कटहल की बुवाई के लिए उपजाऊ मिट्टी का चयन करें। कटहल की खेती वैसे किसी भी प्रकार की मृदा में की जा सकती है ,लेकिन मिट्टी उपजाऊ होनी चाहिए।
कटहल की बुवाई से पहले मिट्टी में जैविक खाद और अन्य उर्वरक खाद अच्छे से मिला लें ,ताकि कटहल की खेती अच्छे से की जा सके। कटहल के खेत में बुवाई के बाद पानी का छिड़काव करना ना भूलें।
पौधा लगाने के बाद पौधे की 1 साल से ज्यादा देखभाल करनी चाहिए ,समय समय पर पौधे की नराई होती रहनी चाहिए। ऐसा करने से पौधे में खरपतवार की समस्या कम देखने को मिलती है।
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कटहल के पेड़ में प्रत्येक वर्ष फल लगता है। पेड़ की अच्छी उर्वरकता और उत्पादकता के लिए उसमे समय समय पर खाद लगाना चाहिए । किसानो द्वारा कटहल की खेती में गोबर खाद ,यूरिया ,पोटास और फास्फोरस जैसे खादों का प्रयोग किया जा सकता है।
जैसे पेड़ में वृद्धि होती है ,उसी प्रकार कटहल के पेड़ में लगने वाले खाद में भी वृद्धि होती रहनी चाहिए, ताकि वृक्ष की उत्पादकता बढ़ती रहे। कटहल के पेड़ में खाद डालने के लिए नीचे एक गड्डा बना लिया जाता है ,जिसमे खाद के मिश्रण को डाला जा सके।
अच्छी और ज्यादा पैदावार के लिए समय -समय पर खेत में खाद को डालते रहना चाहिए। कटहल के पेड़ से रोग्रस्त शाखाओ को निकाल दे ताकि पेड़ की वृद्धि में कोई रुकावट ना आये।
जैसा की आपको बताया गया है कटहल की खेती किसी भी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन बलुई और दोमट मिट्टी को इसके लिए ज्यादा उपयुक्त माना गया है। कटहल को उष्णकटिबंधीय फल माना जाता है, क्यूंकि इसका उत्पादन शुष्क और नम दोनों मौसमो में किया जा सकता है।
कटहल की खेती को ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं रहती है। अधिक सिंचाई करने की वजह से फसल नष्ट हो सकती है। कटहल की जड़े ज्यादा पानी को नहीं सोख सकती है ,इसीलिए किसानो द्वारा खेत में जल निकासी का प्रबंध करना चाहिए।
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कटहल की कुछ उन्नत किस्मे इस प्रकार है :
रुद्राक्षी आदि कटहल की किस्मे है। ज्यादातर कटहल का उत्पादन बीज से ही किया जाता है। एक ही प्रकार के बीज से की गयी खेती में अलग अलग प्रकार के अंतर देखने को मिलते है। यह अंतर ज्यादातर मौसम में बदलाब होने के कारण और मिट्टी की किस्म में पाए जाने वाले फर्क की वजह से होता है।
कटहल की फसल में लगने वाले रोग और कीट का मुख्य कारण है समय पर खाद न डालना , सिंचाई न हो पाना आदि। फसल में रोग लगने का मुख्य कारण खेत में नमी का होना भी हो सकता है।
खेत में ज्यादा सिंचाई कर देना या फिर अधिक वर्षा की वजह से खेत में नमी का आ जाना ,ये फसल की उत्पादकता पर गहरा प्रभाव डालता है।