सरसों की खेती में लगने वाले प्रमुख रोग और उनकी रोकथाम

By : Tractorbird News Published on : 05-Feb-2024
सरसों

सरसों की खेती मुख्य रूप से रबी के मौसम में की जाती है। सरसों की फसल को ठंडे तापमान की आवश्यकता होती है। किसानों के लिए सरसों की फसल में लगने वाले रोग भी एक बड़ी दिक्कत का कारण बनता है। रोगों के कारण फसल की उपज भी कम हो जाती है। 

किसान अगर फसल में निरंतर निगरानी रखते है तो वे समय रहते रोगों की रोकथाम कर सकते हैं। आज इस लेख में हम आपको सरसों की खेती में लगने वाले रोगों की सम्पूर्ण जानकारी देंगे , यदि आप भी किसान है तो ये जानकारी आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण होगी। 

सरसों की खेती में लगने वाले प्रमुख रोग और उनकी रोकथाम 

सरसों की खेती में किसानों को कई कठिनाईओं का सामना करना पड़ता है जिससे की फसल की उपज भी कम हो जाती है। सरसों की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग और उनकी रोकथाम निम्नलिखित है - 

1. सरसों का सफेद रोली (White rust) रोग 

यह सरसों की खेती पर बहुत बुरा प्रभाव करता है। ये रोग बीज जनित और मिट्टी जनित है। इस बीमारी के कारण बुवाई के 30 से 40 दिनों के बाद पत्तियों की निचली सतह पर सफेद ऊभरे हुए फफोले बनते हैं। 

फफोलो की ऊपरी सतह पर पीले धब्बे दिखाई देते हैं। पत्तियों की दोनों सतहों पर उग्र अवस्था में सफेद फफोले फैलते हैं। फफोलो फटने पर सफेद चूर्ण पत्तियों पर फैलता है। 

पीले धबे पत्तियों को पूरी तरह से ढक लेते हैं। पुष्प और फलियाँ दोनों पूरी तरह से खराब हो जाती हैं।  

इस रोग का नियंत्रण कैसे करें?

  • सरसों की बुवाई अक्टुबर के पहले पखवाड़े मे करें।
  • सरसों की खेती में बीजों को जैव-नियंत्रक ट्राइकोड्रर्मा पाउडर की 8-10 ग्राम प्रति किलोग्राम या फफूंद नाशी मेटालेक्सिल (एप्रोन 36 एस.डी) की 6 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोंपचार करकेे बुआई करें।
  • सरसों की खेती में फसल बुवाई के 55-60 दिनो बाद या रोग के लक्षण दिखाई देने पर रिडोमील एम.जेड 2% का छिड़काव करे, आवश्यकता पड़ने पर 10 दिनो के अन्तराल पर छिड़काव को दोहराए। 

2. अंगमारी रोग         

इस बीमारी से पतियों पर कत्थईभूरे रंग के उभरे हुए धबे होते हैं, जिनके किनारे पीले होते हैं। यह धबे आँख की तरह दिखते हैं। 

जब वे उग्र हो जाते हैं, तो यह धबे आपस में मिलकर बड़े हो जाते हैं, जिससे पत्तिया पीली हो जाती है और गिरने लगती है।

ये भी पढ़ें : जीएम सरसों की बुवाई से किसानों को होगा फायद, बढ़ेगी उत्पादकता

इस रोग का नियंत्रण कैसे करें?  

  • बीज को थायरम-75 डब्लू.पी 3 ग्राम या ट्राइकोड्रर्मा पाउडर 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोंपचार करे।
  • 100 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद मे 10 किलो ट्राइकोड्रर्मा हरजेनियम मिलाकर 15 दिन तक रखे व बुवाई से पहले खेत मे छिड़ककर हल्की सिंचाई कर दे।

3. स्केलेरोटीनिया तना सड़न रोग 

सरसों की खेती का यह रोग सबसे खतरनाक है। यह बीज जमीन से होता है। रोग के पहले लक्षण लंबे धब्बे के रूप में तने पर दिखाई देते हैं। 

जिन पर कवक जाल के रूप में दिखाई देता है, उग्र अवस्था में तना फट जाता है और पौधा मुरझाकर सुख जाता है, उन पर काले रंग के गोल कवक के स्केलेरोशिया दिखाई देते हैं। रोग अधिक नमी में फैलता है। 

इस रोग का नियंत्रण कैसे करें?   

सरसों की खेती में ये रोग बहुत नुकसान करता है, इसलिए किसानों की इसकी रोकथाम के लिए निम्नलिखित उपाए अपनाने चाहिए - 

  • बुवाई के लिए रोग मुक्त बीज का उपयोग करें। 
  • बुवाई से पहले बीजों कोकार्बेन्डाजिम + मेन्कौजेब (साफ) 2 ग्राम या ट्राइकोड्रर्मा पाउडर 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोंपचार करे।
  • खड़ी फसल मे बुवाई के 50-60 दिन बाद या रोग के लक्षण दिखाई देने पर कार्बेन्डाजिम 12% + मेन्कौजेब 63% के मिश्रण का 0.2% के घोल का छिड़काव करे व आवश्यकता पड़ने पर 10 दिन के अन्तराल पर छिड़काव को दोहराए।
  • फसल में रोगी पौधे को उखाड़कर नष्ट कर दें।   


  

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