सरसों की खेती मुख्य रूप से रबी के मौसम में की जाती है। सरसों की फसल को ठंडे तापमान की आवश्यकता होती है। किसानों के लिए सरसों की फसल में लगने वाले रोग भी एक बड़ी दिक्कत का कारण बनता है। रोगों के कारण फसल की उपज भी कम हो जाती है।
किसान अगर फसल में निरंतर निगरानी रखते है तो वे समय रहते रोगों की रोकथाम कर सकते हैं। आज इस लेख में हम आपको सरसों की खेती में लगने वाले रोगों की सम्पूर्ण जानकारी देंगे , यदि आप भी किसान है तो ये जानकारी आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण होगी।
सरसों की खेती में किसानों को कई कठिनाईओं का सामना करना पड़ता है जिससे की फसल की उपज भी कम हो जाती है। सरसों की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग और उनकी रोकथाम निम्नलिखित है -
यह सरसों की खेती पर बहुत बुरा प्रभाव करता है। ये रोग बीज जनित और मिट्टी जनित है। इस बीमारी के कारण बुवाई के 30 से 40 दिनों के बाद पत्तियों की निचली सतह पर सफेद ऊभरे हुए फफोले बनते हैं।
फफोलो की ऊपरी सतह पर पीले धब्बे दिखाई देते हैं। पत्तियों की दोनों सतहों पर उग्र अवस्था में सफेद फफोले फैलते हैं। फफोलो फटने पर सफेद चूर्ण पत्तियों पर फैलता है।
पीले धबे पत्तियों को पूरी तरह से ढक लेते हैं। पुष्प और फलियाँ दोनों पूरी तरह से खराब हो जाती हैं।
इस बीमारी से पतियों पर कत्थईभूरे रंग के उभरे हुए धबे होते हैं, जिनके किनारे पीले होते हैं। यह धबे आँख की तरह दिखते हैं।
जब वे उग्र हो जाते हैं, तो यह धबे आपस में मिलकर बड़े हो जाते हैं, जिससे पत्तिया पीली हो जाती है और गिरने लगती है।
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सरसों की खेती का यह रोग सबसे खतरनाक है। यह बीज जमीन से होता है। रोग के पहले लक्षण लंबे धब्बे के रूप में तने पर दिखाई देते हैं।
जिन पर कवक जाल के रूप में दिखाई देता है, उग्र अवस्था में तना फट जाता है और पौधा मुरझाकर सुख जाता है, उन पर काले रंग के गोल कवक के स्केलेरोशिया दिखाई देते हैं। रोग अधिक नमी में फैलता है।
सरसों की खेती में ये रोग बहुत नुकसान करता है, इसलिए किसानों की इसकी रोकथाम के लिए निम्नलिखित उपाए अपनाने चाहिए -