वर्षा ऋतू में घास और हरे चारे की बहुतायत होती है, लेकिन पशु इसे पूरी तरह से नहीं खा सकते। इसलिए पशुपालक इस परिस्थिति में साइलेज बनाने की प्रक्रिया द्वारा सूखे मौसम या सर्दी के लिए अतिरिक्त हरे चारे को सुरक्षित रख सकते हैं।
साइलेज बनाने का मुख्य उद्देश्य है कि जिस मौसम में हरा चारा आवश्यकता से अधिक मात्रा में उपलब्ध रहता है, उसे भविष्य में संरक्षित किया जा सके ताकि दुधारू पशुओं की दूध उत्पादन की क्षमता बरकरार रहे।
उस पदार्थ को साइलेज कहा जाता है जो अधिक नमी वाले चारे को नियंत्रित किण्वन विधि से बनाया जाता है और इसमें चारे के पोषक तत्वों की उपलब्ता बनी रहती है।
साइलेज (silage) बनाने में किण्वन एनारोबिक परिस्थितियों में होता है। यह ताजा चारे को खराब होने से बचाता है और उसके पोषक तत्वों को बरकरार रखता है।
जब हरे चारे के पौधों को हवा की अनुपस्थिति में किनवाकृत किया जाता है तो लैक्टिक अम्ल पैदा होता है। यह साइलेज बनाने और उसके सुरक्षित रख रखाव के लिए खाई, गड्ढो या पॉलीथिन से हरे चारे को लपेट कर बनाया जाता है |
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साइलेज बनने के लिए चारा फसलों का प्रयोग किया जाता है। मक्का, बाजरा, जई, ज्वार इत्यादि फसलें अच्छे साइलेज बनाने के लिए उपयुक्त है।
ये फसलें पोषक तत्वों से भरपूर होती है। जिससे की पशुओं का दूध का उत्पादन आसानी से बढ़ जाता है। चारा फसल का चुनाव साइलेज की गुणवत्ता को प्रभावित करता है।
इसके लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है कि कटाई सही समय पर की जाए। साइलेज को बेहतर बनाने के लिए चारा फसलों को फूल आने की अवस्था में काटना चाहिए। हरे चारे को बिल्कुल बारीक काटना चाहिए, आकार छोटा होने पर साइलेज बनाना आसान होगा।
अच्छा साइलेज हल्का हरा या हरा भूरा रंग या सुनहरा होना चाहिए। इसमें सिरके की तरह एक सुखद गंध और यहाँ स्वाद में अम्लीयहोना चाहिए। इसमें फफूंदी नहीं होनी चाहिए। काला रंग खराब साइलेज का संकेत देता है।
साइलेज उत्पादन से पौष्टिक चारे की आपूर्ति पुरे वर्ष की जा सकती है, जिससे की पशुओं के दूध का उत्पादन अच्छा बना रहता है।
साइलेज हरे चारे जितना ही पोष्टिक होता है क्योंकि यह तत्वों को उनके मूल रूप में सुरक्षित रखता है।
पोषक तत्त्वों से भरपूर हरे चारे का जुगाड़ साइलेज बना कर किया जाता है. हरे चारे व पोषक तत्त्वों से भरपूर खाद्यानन को मिला कर बनाए जाने वाले साइलेज से दूध उत्पादन में तेजी से बढ़ोतरी होती है।
साइलेज के रूप में हरे चारे में पाए जाने वाले गुण व पौष्टिक तत्त्व नष्ट नहीं होते हैं, बल्कि इस में और कई तरह के सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की बढ़ोतरी हो जाती है।