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जैसा की आप जानते है वर्तमान परिदर्शय में हमारे आहार का बड़ा हिस्सा हानिकारक रसायन युक्त सब्जियां है। हानिकारक रसायन युक्त सब्जियों के सेवन के चलते पोषक तत्वों की आवश्यकता पूर्ति की बजाय हम ऐसे जहर का सेवन कर रहे है जिससे कैंसर जैसी हानिकारक बीमारी होती है। आमतौर पर सब्जियाँ शहर के समीप के गावों में ही उगायी जाती है। दूसरी ओर घर में बगीचों का प्रचलन भी शहरों में धीरे - धीरे बढ़ता जा रहा है।
बड़े शहरों में जनसँख्या वृद्धि के कारण शहर में बने हुए घरों में जगह की कमी, बाजार में आसमान छूती सब्जियों के भाव, रसायन युक्त उत्पाद, असिंतुलित भोजन जैसी समस्या आम बात हो गयी है। इन सभी समस्याओ का निदान है रुफटोप गार्डनिंग। यह एक ऐसी विधि है, जिसमें अतिरिक्त स्थान के बिना भी सब्जियाँ ऊगाई जा सकती है।
इस विधि में सब्जियों को छत के ऊपर उगाया जाता है इसलिए इसे टेरिस गार्डनिंग के नाम से भी जाना जाता है। आज कल के समय में बाजार में पौधे उगाने के लिए प्लास्टिक की थैलिया, मिट्टी के गमले, सीमेंट के गमले आसानी से मिल जाते है जिस में पौधे लगा सकते है।
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आजकल बाजार में विभिन्न प्रकार के पॉलीथिन बैग उपलब्ध है, जिनको ग्रो बैग के नाम से जाना जाता है। अतः इसका चुनाव उगाई जाने वाली सब्जी पर निर्भर करता है।
गमलों का चयन करते समय ये जरूर ध्यान रखे की गमले के नीचे पानी की निकासी के लिए छेद हो, जिससे की पानी गमलों में एक जगह इकठ्ठा न हो। पॉलीथिन बैग के अलावा सीमेंट, मिट्टी के पुराने बर्तन, लकड़ी या टीन का डिब्बा अथवा प्लास्टिक के बने गमले भी सब्जी उगने के लिए इस्तेमाल किए जा सकते है। उन्ही गमलों का चयन करे जिन का आकार 12 इंच से ज्यादा हो।
गमलों के नीचे अतिरिक्त पानी की निकासी के लिए यदि छेद नहीं हो तो पानी एकत्रित होने से जड़ो में सड़न की समस्या हो जाएगी। अतः गमलों में छेद अवश्य करे।
जहा तक संभव हो हल्के रंग के गमलों का इस्तेमाल करें। यदि गहरे रंग का गमला है तो उस पर हल्के रंग की पोताई कर दें, जिससे पौधे को अत्यधिक गर्मी से बचाव किया जा सके। लोहे के डिब्बों की जगह मिट्टी के गमलों को प्राथमिकता दें क्योंकि लोहे के गमले अत्यधिक गर्म व ठंडे होकर पौधे को नुकसान पंहुचा सकते है। टमाटर, खीरा, बैंगन जैसे पौधे के लिए बड़े गमले या बक्से का चयन करें (कम से कम 24 -30 इंच का आकार)।
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गमलें में सब्जियां उगाने के लिए छत, बरामदे, खिड़कियों का इस्तेमाल किया जा सकता है। गमलों को रखने के लिए हमेशा ऐसी जगह का चुनाव करें जहां दिन में कम से कम 6-7 घंटे सूर्य की रोशनी पड़ती हो अन्यथा छाया में पौधे अपना भोजन नहीं बना पाते है, जिसके कारण उनके विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
गमलें को हमेशा इस तरह से व्यवस्थित करना चाहिए कि एक पौधे की छाया दूसरे पर न पड़े। दक्षिण की तरफ हमेशा कम ऊंचाई वाले पौधे जैसे - धनियां, मेथी, पालक लगाए व उत्तर की तरफ में वे पौधे रखें जिनकी लंबाई अपेक्षाकृत अधिक हो। इसके अलावा दो गमलों के बीच थोड़ी जगह छोड़े जिससे उनमें धुप के साथ -साथ खरपतवार नियंत्रण एवं पानी लगाने में भी सुविधा रहे।
घर की छत के ऊपर लगभग सभी तरह की सब्जियाँ उगा सकते है। सब्जियों का चयन मौसम ओर गमलों के आकर के हिसाब से किया जाता है। इसमें टमाटर, मिर्च, बैंगन के अलावा हरी सब्जियाँ (पालक, धानिया, मेथी), बेलवाली सब्जियां (लोकि, करेला, ककड़ी, तोरई, कद्दू इत्यादि), ब्लब वाली सब्जियाँ (प्याज, लहसुन, आलू), बिन्स, भिंडी, फूलगोभी, पत्तागोभी इत्यादि उगा सकते है।
गमले भरते समय वर्मीकम्पोस्ट को उचित अनुपात में डालना चाहिए यदि वर्मीकम्पोस्ट उपलब्ध नहीं है तो उसमें अच्छी तरह सड़ी गली गोबर की खाद डाले। इसके अलावा पानी में घुलनशील उर्वरक भी बाजार में उपलब्ध है इस्तेमाल कर सकते है।
गमलों की सिंचाई प्रबंधन का ध्यान रखना अतिआवश्यक है। बैग में पानी इतना ही डाले की छिद्र से बहार न निकले। अत्यधिक पानी अथवा कम पानी दोनों ही स्थिति में पौधे की पैदावार पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
पानी के साथ पोषक तत्व भी बहकर निकलने की संभावना रहती है, जिसका प्रभाव पौधे की बढ़वार पर पड़ता है। पानी के साथ पोषक तत्व भी बहकर निकलने की संभावना रहती है, जिसका प्रभाव पौधे की बढ़वार पर पड़ता है।
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गमलों से समय - समय पर उगे हुए खरपतवार हाथ से निकाल देना चाहिए। इसके अलावा किट एवं बीमारी आने पर इनके नियंत्रण के लिए जैविक कीटनाशक नीम का घोल (प्रति लीटर पानी में 3 मल) भी उपलब्ध है।