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जैसे की आप जानते है धान की खेती मुख्य रूप से खरीफ के मौसम में की जाती है। धान की सीधी बुवाई करने के लिए किसानों को कई बातों की जानकारी होनी चाहिए इस आर्टिकल के माध्यम से आप धान की सीधी बुवाई से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी के बारे में जान सकते है।
किस भाइयों अगर आप धान की सीधी बुवाई करना का सोच रहे है तो सब से पहले आपको समय का विशेष ध्यान रखना होगा। जून के प्रथम सप्ताह से 20 जून तक धान की सीधी बुवाई का उपयुक्त समय होता है।
धान की सीधी बुवाई करने के लिए सबसे पहले खेत की गहरी जुताई करनी पड़ती है। इसके बाद 2-3 जुताई कल्टीवेटर या हैरो से करे और अंत में भूमि समतल करनेवाला पाटा लगा कर खेत को समतल करे। खेत में पानी की बचत व अच्छे जमाव के लिए लेज़र लैंड लेवलर द्वारा खेत का जमाव होना आवश्यक है।
कम समय में पकने वाली एवं ज्यादा उपज देने वाली किस्मों का चुनाव करे। धान की दो प्रकार की किस्में होती है बासमती किस्में और संकर एवं मोटे धान की किस्में।
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प्रमुख बासमती किस्में है - पूसा बासमती 1509, पूसा सुगंद -5, पूसा बासमती 1121, पूसा बासमती 1718, सी.एस.आर 30।
संकर एवं मोटे धान की किस्में – अराइज़ 6129, पी.आर.एच 10, पी.आर 128।
खेत तैयार करने के बाद देशी हल या सीड ड्रिल की सहयता से बुवाई करे। पंक्ति से पंक्ति की दुरी एवं बीज की गहराई सुनश्चित करें। बुवाई के समय खेत में नमी होना आवश्यक है। एक हेक्टेयर के लिए 20-25 किलोग्राम बीज (8-10 किलोग्राम बीज प्रति एकड़) की मात्रा पर्याप्त होती है।
बुवाई करने से पहले बीज का उपचार करना बहुत आवश्यक होता है। इसके लिए 10 किलोग्राम बीज को 20 ग्राम carbendazim + 1 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन को 10 लीटर पानी में घोलकर बीज को 24 घंटे तक भिगों कर रखें। इसके बाद बीज को 2-3 घंटे छाया में सुखाएं ताकि नमी उड़ जाये एवं सीड ड्रील से असनी से बुवाई हो जाये।
उर्वरको का प्रयोग मिट्टी की जांच के आधार पर किया जाना चहिए। संकर एवं ज्यादा उपज देने वाली किस्मो के लिए 150-160 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60-70 किलोग्राम फॉस्फोरस, 50-60 किलोग्राम पोटाश एवं 25 किलोग्राम जिंक सलफेट प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें।
बासमती किस्मों के लिए उर्वरको की कम मात्रा की आवश्यकता होती है अतः 100-110 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40-50 किलोग्राम फॉस्फोरस, 30-40 किलोग्राम पोटाश एवं 20-25 किलोग्राम जिंक सलफेट प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें। नाइट्रोजन की आधी मात्रा फॉस्फोरस, पोटाश एवं जिंक की बुवाई के समय प्रयोग करें। नाइट्रोजन की अनुमोदित मात्रा के आधे भाग को दो भागों में विभाजित कर, पहला भाग बुवाई के 25-30 दिन बाद तथा दूसरा भाग बुवाई के दिन बाद फसल में देना चाहिए।
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आयरन (Fe) तत्व की कमी धान की सीधी बुवाई में मुख्य रूप से पाई जाती है। शुरुआत की अवस्था में पत्तिया पिली हो जाती है और उसके बाद सफेद होकर अंत में सुख जाती है इसकी समाधान के लिए आयरन सलफेट का घोल बनाकर छिड़काव करें।
प्रथम सिंचाई बीज की बुवाई के 10-15 दिनों बाद की जा सकती है। इससे गहराई तक जड़ो को जमने तथा सूखे के प्रति प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने में सहायता मिलती है। सिंचाई की बारंबारता 3-7 दिन रखे और साथ ही साथ हल्की सिंचाई करें ताकि खेत में नमी बनी रहे। अंकुरण, कल्ले फूटने व फूल तथा बाली बनने की अवस्था पर खेत में पानी की कमी नहीं रहनी चहिए।
सीधी बुवाई की गई धान की फसल में खरपतवार मुख्य समस्या होती है। खरपतवारों को भौतिक और रासायनिक विधि से प्रबंधन किया जा सकता है। भौतिक विधि में 20-25 दिनों बाद, खुरपी की सहायता से निराई - गुड़ाई करें एवं दूसरी निराई – गुड़ाई 40-45 दिन बाद करें।
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रासायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण करने के लिए निम्न खरपतवारनाशी का प्रयोग करें :