मशरूम (खुंब) एक प्रकार का मांसल कवक होता है जो अत्यंत स्वादिष्ट एवं पौष्टिक शुद्ध शाकाहारी सब्जी के रूप में प्रयोग किया जाता है। पृथ्वी पर पाए जाने सभी खुंब खाने के योग्य नहीं होते है बहुत सारी खुंब की किस्में जहरीली भी बहुत होती है।
वैज्ञानिकों के अध्ययन से अभी तक पता चला है कि हमारे भोजन में अभी तक 100 प्रकार की मशरूम की किस्में खाने में शामिल हो चुकी है। पुराने दस्तावजों से पता लगा है कि प्राचीन समय में अनपढ़ लोग मशरूम की खेती करते थे। लकिन आज के युग में कृषि क्षेत्र में शिक्षित लोगों के लिए कई अवसर पैदा किए है।
मशरूम (खुंब) नामक कवक से घर और होटलों में बहुत सारी डिश तैयार की जाती है। मशरूम (खुंब) का प्रयोग मुख्य रूप से सब्जी के रूप में किया जाता है। इसमें अधिकतम प्रोटीन 20 -30% तक होता है और बहुत से विटामिन जैसे की बी - कॉम्प्लेक्स, खनिज, लोहा, लायसिन युक्त एवं सम्पूर्ण रुपए से क्लोस्ट्रोल रहित और एंटी ऑक्सीडेंट गुणों के कारण स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभकारी होता है, इसलिए आज कल के समय में बाजारों में इसकी मांग पुरे वर्ष ही रहती है।
भारत देश में प्रति वर्ष मशरूम (खुंब) का उत्पादन लगभग 160 हजार टन तक पहुंच गया है, उत्पादन में लगभग बटन मशरूम (खुंब) 85% के योगदान के साथ प्रथम स्थान पर है। बजन मशरूम को उत्तरी भारत के इलाकों जैसे की पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में अक्टूबर से मार्च के बीच उगाया जा सकता है और इस प्रकार मशरूम (खुंब) से तीन - तीन महीने की अवधि में दो फसले प्राप्त कर सकते है।
बटन मशरूम (खुंब) के कवक जाल की वृद्धि के लिए 22 -25 डिग्री सेल्सियस तापमान सबसे अनुकूल होता है और फलनकाय की वृद्धि के लिए अनुकूलित तापमान 16 -18 डिग्री सेल्सियस है। 14 डिग्री सेल्सियस से नीचे तापमान होने पर कवक जाल और फलनकाय की वृद्धि बहुत कम हो जाती है। बटन मशरूम (खुंब) में अधिकतम तापमान होने पर कई प्रकार के रोगों का प्रकोप हो जाता है।
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बटन मशरूम (खुंब) की वृद्धि के लिए 80 -85% आपेक्षिक आर्द्रता बहुत आवश्यक होती है। अगेरिकस की एक वैरायटी अगेरिकस बिटोरक्विस (Agaricus bitorquis) भी व्यावसायिक रूप से उगाई जाती है। इस किसम की वृद्धि के लिए 25 -30 डिग्री सेल्सियस तापमान कवक जाल और फलनकाय की वृद्धि के लिए अनुकूलित तापमान 20 -25 डिग्री सेल्सियस होता है। वैसे तो उत्तरी राज्यों के लिए अगेरिकस बाइस्पोरस प्रजाति ज्यादा लोकप्रय मानी जाती है।
बटन मशरूम की खेती मुख्य रूप से कंपोस्ट पर की जाती है कंपोस्ट को कृत्रिम रूप से तैयार किया जाता है। कंपोस्ट को बनाने की मुख्य दो विधियाँ है - लम्बी विधि में 28 दिनों और छोटी विधि या pasteurization विधि में 18 दिनों में कंपोस्ट तैयार होती है।
मशरूम उत्पादन या इसकी खेती के लिए आवश्यक चीजें इस प्रकार है - मशरूम घर, 100cm x 15 cm परिमाण की ट्रे अथवा 30x45 cm परिमाप की थैली, कंपोस्ट बनाने के लिए चबूतरा, कंपोस्ट बनाने की सामग्री, मशरूम स्पान, केसिंग मिट्टी आदि।
मशरूम घर का निर्माण करते समय ये ध्यान अवश्य रखे की मशरूम घर हवादार एवं तापरोधी होना चाहिए ताकि मशरूम घर के भीतर तापमान और आपेक्षिक आर्द्रता को नियंत्रित रखा जा सके। इसके भीतर 1500-2000 लक्स तीव्रता के प्रकाश, अडजस्ट पंखे और कूलर या एयर कंडीशनर की व्यवस्था होती चाहिए। इसके भीतर इट या कंक्रीट का बना पक्का फर्श होना चाहिए।
मशरूम कंपोस्ट बनना एक जटिल जैव रसायन प्रिक्रिया है। इसमें सेल्यूलोस, हेमि सेल्यूलोस, और लिग्निन आशिंक रूप से सड़ जाते हैं और कार्बनिक नाइट्रोजन से सूक्ष्मजीवी प्रोटीन का संश्लेषण होता हैं। कम्पोस्टिंग के दौरान वैविक परिस्तिथितियों में जटिल किण्वन प्रिक्रिया होती हैं।
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कंपोस्ट बनाने के लिए प्रयोग में लाया जाने वाला भूसा एक साल से अधिक पुराना, बारिश में भीगा हुआ नहीं होना चाहिए क्योकि ज्याद पुराने भूसे में पोषकतत्व ख़त्म हो जाते हैं। 250 किलोग्राम गेहूँ का भूसे के स्थान पर 400 किलोग्राम धान पुआल का भी प्रयोग कर सकते हैं। यदि धान का भूसा प्रयोग कर रहें हो तो साथ में 6 किलोग्राम बिनौले के आटे का प्रयोग भी करें।
खाद तैयार करने के पहले चरण के दौरान, धान के पुआल को परतों में रखा जाता है और खाद, गेहूं की भूसी, गुड़ आदि के साथ ढेर में पर्याप्त पानी डाला जाता है। पूरी चीज को पुआल के साथ अच्छी तरह मिलाया जाता है और एक ढेर (लगभग 5 फीट ऊंचा) बनाया जाता है, लकड़ी के बोर्ड की मदद से 5 फीट चौड़ा और कितनी भी लम्बाई का बनाया जा सकता है। स्टैक को पलट दिया जाता है और दूसरे दिन फिर से सींचा जाता है।
चौथे दिन दूसरी बार जिप्सम डालकर ढेर को फिर से पलट दिया जाता है और पानी पिलाया जाता है। बारहवें दिन तीसरी और अंतिम मोड़ दिया जाता है जब खाद का रंग गहरे भूरे रंग में बदल जाता है और यह अमोनिया की तेज गंध का उत्सर्जन करना शुरू कर देता है।
दूसरा चरण पाश्चुरीकरण का चरण है। सूक्ष्मजीवों की मध्यस्थता वाली किण्वन प्रक्रिया के परिणामस्वरूप तैयार की गई खाद को अवांछित रोगाणुओं और प्रतिस्पर्धियों को मारने और अमोनिया को माइक्रोबियल प्रोटीन में बदलने के लिए पास्चुरीकृत करने की आवश्यकता होती है। पूरी प्रक्रिया एक स्टीमिंग रूम के अंदर की जाती है जहां 60 degree C का हवा का तापमान 4 घंटे तक बनाए रखा जाता है।
अंत में प्राप्त खाद 70% नमी की मात्रा और पीएच 7.5 के साथ संरचना में दानेदार होनी चाहिए। यह एक गहरे भूरे रंग, मीठी अप्रिय गंध और अमोनिया, कीड़ों और नेमाटोड से मुक्त होना चाहिए। प्रक्रिया पूरी होने के बाद, सब्सट्रेट को 250 सी तक ठंडा किया जाता है।
कंपोस्टिंग की लंबी विधि आमतौर पर उन क्षेत्रों में अपनाई जाती है जहां भाप पाश्चुरीकरण की सुविधा उपलब्ध नहीं है। इस विधि में, कंपोस्टिंग के लिए सब्सट्रेट तैयार करने के लगभग छह दिन बाद पहली मोड़ दी जाती है। दूसरा मोड़ दसवें दिन और तीसरा मोड़ तेरहवें दिन दिया जाता है जब जिप्सम मिलाया जाता है। चौथा, पांचवां और छठा मोड़ सोलहवें, उन्नीसवें और बीसवें दिन दिया जाता है।
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पच्चीसवें दिन 10% बीएचसी (125 ग्राम) मिलाकर सातवीं टर्निंग दी जाती है और अट्ठाईसवें दिन आठवीं टर्निंग दी जाती है जिसके बाद यह जांचा जाता है कि खाद में अमोनिया की गंध तो नहीं है। खाद केवल तभी तैयार होती है जब उसमें अमोनिया की कोई गंध न हो; अन्यथा अमोनिया की गंध न आने तक तीन दिनों के अंतराल पर कुछ और पलटियां दी जाती हैं।
स्पॉनिंग प्रक्रिया समाप्त होने के बाद, खाद को पॉलिथीन बैग (90x90 सेमी, 150 गेज मोटी 20-25 किलोग्राम प्रति बैग की क्षमता)/ट्रे (ज्यादातर लकड़ी की ट्रे 1x1/2 मीटर, 20-30 किलोग्राम समायोजित करने वाली) में भर दिया जाता है। कम्पोस्ट/अलमारियां जो या तो अखबार की शीट या पॉलिथीन से ढकी होती हैं।
कवक शरीर स्पॉन से निकलते हैं और उपनिवेश बनने में लगभग दो सप्ताह (12-14 दिन) लगते हैं। क्रॉपिंग रूम में तापमान 23 ± 20 डिग्री सेल्सियस रखा जाता है। उच्च तापमान स्पॉन के विकास के लिए हानिकारक होता है और इस उद्देश्य के लिए निर्दिष्ट तापमान से नीचे किसी भी तापमान के परिणामस्वरूप धीमी गति से स्पॉन चलता है। सापेक्ष आर्द्रता लगभग 90% होनी चाहिए और सामान्य CO2 सांद्रता से अधिक होना फायदेमंद होगा।
पूर्ण स्पॉन रन के बाद कम्पोस्ट बेड को मिट्टी की एक परत (आवरण) से लगभग 3-4 सें.मी. ढक देना चाहिए। फलने के लिए गाढ़ा आवरण सामग्री में उच्च सरंध्रता, जल धारण क्षमता और पीएच 7-7.5 के बीच होना चाहिए।
Peat moss जिसे सर्वोत्तम आवरण सामग्री माना जाता है, भारत में उपलब्ध नहीं है, जैसे बगीचे की दोमट मिट्टी और रेत (4:1); सड़ी गोबर और दोमट मिट्टी (1:1) और खाद (2-3 साल पुरानी); रेत और चूने का आमतौर पर उपयोग किया जाता है।
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आवेदन से पहले केसिंग मिट्टी को या तो पाश्चुरीकृत किया जाना चाहिए (7-8 घंटे के लिए 66-70 डिग्री सेल्सियस पर), फॉर्मलडिहाइड (2%), और बाविस्टिन (75 पीपीएम) के साथ इलाज किया जाना चाहिए या स्टीम स्टरलाइज़ किया जाना चाहिए।
आवरण के लिए सामग्री का उपयोग करने से कम से कम 15 दिन पहले उपचार किया जाना चाहिए। केसिंग किए जाने के बाद कमरे का तापमान फिर से 23-28 डिग्री सेल्सियस और अगले 8-10 दिनों के लिए 85-90% की सापेक्ष आर्द्रता बनाए रखा जाता है। इस अवस्था में कम CO2 सांद्रता प्रजनन वृद्धि के लिए अनुकूल होती है।
फलनकाय बनने के लिए अनुकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों होना बहुत आवश्यक हैं। फलनकाय बनते समय ताजी हवा आवश्यक होती हैं। समय -समय पर स्प्रेयर से पानी का छिड़काव कर केसिंग मिट्टी को नम बनाए रखते हैं। इस दौरान तापमान 14 - 18 डिग्री सेल्सियस और आपेक्षित आर्द्रता 80 -85% रखनी चाहिए।
अनुकूल परिस्थितियों में सामान्यता केसिंग के 15 -20 दिन बाद मशरूम के पिन दिखाई देने लगते हैं। 4 -5 दिनों के अंदर ये पिन सफ़ेद बटन का रूप धारण कर लेते हैं। तुड़ाई योग्य बनते बनते मशरूमों को 8 -10 दिन का समय लग जाता हैं।
जब मशरूम के पिलियस (टोपी) का व्यास 3 -4.5 कम तक हो जाए और तने की लंबाई से लगभग दुगुना हो जाय तो इसकी तुड़ाई कर लेनी चाहिए। यदि तुड़ाई से पहले 2% एस्कार्बिक अम्ल का छिड़काव कर दिया जाए तो मशरूम का रंग सफ़ेद बना रहता हैं क्योकि पॉलीफिओनाल ऑक्सीडेज नामक एन्ज़ाइम की क्रिया रुक जाती हैं। जब टोपी दृढ़ अवस्था में हो और उसके नीचे स्थित झिल्ली फटी न हो तो यह समय तुड़ाई के लिए उत्तम समय मन जाता हैं।
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