मधुमक्खी पालन: कृषि के साथ किसानों के लिए अच्छा व्यवसाय

By : Tractorbird News Published on : 18-May-2023
मधुमक्खी

आज कल प्रदूषण की वजह से तापमान में इतना बदलाव हो गया है कि किसानों को फसलों की उपज प्रयाप्त प्राप्त नहीं हो रही है जिससे किसानों की लागत ज्यादा और मुनाफा कम हो रहा है। इससे बचाव के लिए किसान कोई और व्यवसाय अपना रहे है। मधुमक्खियों का पालन भी बहुत अच्छा व्यवसाय है। मधुमक्खियों का पालन कर के भी किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते है। 

विकसित देशों में खेती करने वाले किसानों को सम्पूर्ण जानकारी होती है कि मधुमक्खियों का विभिन्न फसलों में सक्षम परागण में महत्वपूर्ण योगदान होता है, इसलिए वहाँ विभिन्न फसलों की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता और देशों से अलग है। भारत एक कृषि प्रधान देश होते हुए भी यहाँ पर अधिकतर किसान अनपढ़ होने की वजह से मधुमक्खियों के पालन की जानकारी नहीं है। 

विकसित देशों और भारत जैसे देशों में उत्पाद की गुणवत्ता और उत्पादकता में अंतर का एक कारण मधुमक्खियों एवं अन्य परागण कीटो की कमी होना भी है, जिसके कारण फसलों में सक्षम परागण नहीं हो पाता है। यहाँ इस बात का उल्लेख करना भी आवश्यक है कि परागण के कारण परपरागित फसलों में उत्पादन और गुणवत्ता में बढ़ोतरी होती है। मधुमक्खी पालन में होने वाले परागण की वजह से फसल उत्पादन में होने वाली वृद्धि निम्नलिखित है - तोरिया में 44 %, सूरजमुखी में 32-45%, कपास में 17-20%, लोबिया घास में 110%, प्याज में 90%, सेब 45% और काजू में 200% दर्ज की गयी है। मधुमक्खी सौंफ के उत्पादन को लगभग 15 गुना तक बढ़ा देती है। इसके साथ - साथ स्वपरागित फसलों में भी उत्पादकता में 30% तक वृद्धि देखी गयी है। तिल की स्वपरागित किस्मों में उत्पादन 20 - 30% अधिक पाया गया है। 

मधुमक्खियों से फसलों की उपज तो बढ़ती ही है और अन्य कई उत्पाद भी प्राप्त होते है जैसे की - शहद, मोम, पराग, गोंद, शाही जेली और मधुमक्खी का विष इत्यादि, जिससे अतरिक्त आय के साथ रोजगार के अवसर भी प्राप्त होंगे। मधुमक्खी पालन एक तकनीकी एवं वैज्ञानिक कार्य है। 

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विकसित देशों में भी बड़े पैमाने पर परागण के लिए मधुमक्खी पालन किया जाता है। इसी प्रकार भारत में भी किसानों और युवाओं को इस व्यवसाय को अपनाना चाहिए जिससे आय और रोजगार अर्जित किया जा सके। मधुमक्खी पालन एक ऐसा व्यवसाय है जो मानव जाती को लाभ प्रदान करता है। यह एक कम खर्चीला घरेलु उद्योग है जिसमें आय, रोजगार व वातावरण शुद्ध रखने की क्षमता है।

विश्व भर में मधुमक्खियों की प्रजातियाँ

विश्व भर में मधुमक्खियों की हजारों प्रजातियाँ है जिनका फसलों के परागण में 70% से भी अधिक योगदान है, जबकि 8000 से अधिक दूसरे किट, तितलियों, चमगादड़ आदि भी कुछ हद तक फसलों में परागण का कार्य करते है। जब मधुमक्खी पालन की बात आती है तो सबसे पहले हमारा ध्यान शहद की तरफ जाता है, लेकिन ये वास्तव में मधुमक्खियों द्वारा उत्पादित एक द्वितीयक उत्पाद है जबकि इनका प्राथमिक कार्य फसलों में परागण के रूप में होता है। 

भारत वर्ष अपनी जैव - विविधता के लिए जाना जाता है। विश्व में उपलब्ध मधुमक्खियों की प्रजातियों में से 5 प्रजातियाँ भारत के विभिन्न भागों में बहुतायत में पाई जाती है, जो मुख्य रूप से फसलों में परागण का कार्य करती है, जिनमे 2 प्रजातिया पालतू है, जबकि अन्य 3 जंगली है। 

भारत में मुख्य तौर पर एपिस सिराना इण्डिका और एपिस मेलीफेरा  प्रजातियों का मधुमक्खी पालन लकड़ी के बक्सों/पेटियों में आधुनिक तरीके से पालते है। औसत एक वर्ष में एपिस सिराना के मौनवंश से लगभग 12 - 15 किलोग्राम तक शहद का उत्पादन होता है, जबकि एक एपिस मेलीफेरा के मौनवंश से लगभग 25 -30 किलोग्राम शहद प्राप्त किया जा सकता है। यदि पुरे वर्ष माइग्रेशन किया जाए तथा शैलो सुपर चढ़ाकर मौनपालन किया जाए तो एक मौनगृह से 50 -60 किलोग्राम शहद प्राप्त किया जा सकता है।

भूमिहीन मजदुर, बेरोजगार युवक और महिलाएँ मधुमक्खी पालन को व्यवसाय के रूप में अपना सकते है। शरुआत में इस व्यवसाय को 10 -15 मौनवंशों से शरू किया जा सकता है। एक मौनवंश से 2 किलोग्राम पराग प्राप्त किए जा सकते है जिनकी बाजार में कीमत 500 रूपए प्रति किलोग्राम होती है। एक वर्ष में मधुमक्खियों की बढ़वार दुगुनी हो जाती है। 

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भारत में मिलने वाली मधुमक्खियों की महत्वपूर्ण प्रजातियाँ व उनकी विशेषताएँ 

एपिस सिराना इण्डिका 

खाना ढूंढ़ने का क्षेत्र - 1.5 - 2.0 km

इन प्रजातियों को छत्ते में रखा जा सकता हैं और शहद उत्पादन और परागण के प्रयोजन के लिए उपयोग किया जाता हैं। 

इनकी संख्या परागण/शहद की आवश्यकताओं के अनुसार परिवर्तित की जा सकती हैं। 

एपिस मेलीफेरा

खाना ढूंढ़ने का क्षेत्र 2-3 किलोमीटर

इन प्रजातियों को छत्ते में रखा जा सकता हैं और शहद उत्पादन और परागण के प्रयोजन के लिए उपयोग किया जाता हैं। 

इनकी संख्या परागण/शहद की आवश्यकताओं के अनुसार परिवर्तित की जा सकती हैं। 

एपिस डोरसाटा 

खाना ढूंढ़ने का क्षेत्र - 4 -5 किलोमीटर 

ये जंगली प्रजातियाँ हैं और इन्हें पाला नहीं जा सकता हैं। 

ये प्रमुख प्रजातियाँ हैं जो बीज मसाला फसलों के परागण में शामिल हैं

इन मधुमक्खियों की सहायता सुरक्षित कीटनाशकों के विवेकपूर्ण उपयोग से प्रभावी ढंग से की जा सकती हैं।

एपिस फ़्लोरिया 

खाना ढूंढ़ने का क्षेत्र - 1 किलोमीटर

ये भी जंगली प्रजातियाँ हैं और इन्हें पाला नहीं जा सकता हैं। 

एपिस फ़्लोरिया फसलों पर अधिकतम मधुमक्खी आबादी का गठन करता हैं और प्रमुख परागणकर्ता हैं।

इन मधुमक्खियों की सहायता सुरक्षित कीटनाशकों के विवेकपूर्ण उपयोग से प्रभावी ढंग से की जा सकती हैं।

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मधुमक्खियाँ सबसे सक्षम एवं कुशल परागणकर्ता होती हैं जिसके विशेष अंग इन्हें निम्न विशेष क्षमताएँ प्रदान करते हैं :

शरीर के अंगो को विशेष रूप से परागकण लेने के लिए परिवर्तित किया गया हैं, उदहारण - उनके पिछले पैरों में पराग टोकरियाँ मोजूद होना। 

मधुमक्खियों के शरीर पर काफी बाल होते हैं। वे जब फूलों से अपना भोजन जुटाने हेतु पराग और मकरंद इकठा कर रही होती हैं तो पराग इनके शरीर के बालों पर लग जाते हैं। जैसे ही वे दूसरे फूलों पर जाती हैं तो पराग जायांग के संपर्क में आ जाता हैं, इस प्रकार परागण अपने आप हो जाता हैं। 

मधुमक्खियाँ लगातार एक ही प्रकार के फूलों पर तब तक कार्य करती हैं जब तक पराग और मकरंद प्रयाप्त मात्रा में मिलता रहता हैं, जबकि अन्य किट एक ही समय में कई प्रजातियों के फूलों पर कार्य करते है। 

मधुमक्खियों में सबसे निपुण व विश्वसनीय परागणकर्ता होने के साथ - साथ सामाजिक व व्यावहारिक विशेषताएँ हैं। ये कुटुंब मौनवंश के रूप में रहती हैं और परिवार का सारा काम करती हैं। एक-दूसरे की आवश्यकताओ को पूरा करने व शिशुओं को पालने के लिए इकठ्ठे होकर कार्य करती हैं। 

मधुमक्खियों में मुख्य प्रकार की सुचना व्यवस्था होती हैं जिसके द्वारा अच्छा मकरंद व पराग स्त्रोत मिलने पर हजारों श्रमिक मधुमक्खियों को भोजन इकट्ठा करने के लिए भर्ती किया जा सकता हैं। 

मधुमक्खियाँ अन्य कीटों की अपेक्षा एक समय में अधिक फूलों पर घूमती हैं। 

मधुमक्खियाँ विभिन्न प्रकार की जलवायु में कार्य कर सकती हैं। 

मधुमक्खियों की संख्या कुशल प्रबंधन द्वारा बढ़ाई जा सकती हैं और आवश्यकतानुसार परागण के लिए फसलों में स्थानांतरित की जा सकती हैं। 

मधुमक्खी पालन के लिए स्थान निर्धारण 

मधुमक्खी पालन के लिए उन स्थानों का चयन करें जहां पर 2-3 किलोमीटर के क्षेत्र में पेड़ -पौधे बहुतायत में हों, जिनमें से मकरंद वर्ष भर मिल सकें। 

तेज हवाओं का मधुमक्खी पालन के स्थानों पर सीधा प्रभाव नहीं होना चाहिये। यदि स्थान पर छायादार पेड़ नहीं हैं तो वहां अप्राकृतिक रूप से छायादार स्थान बनाना चाहिए। 

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मधुमक्खी पालन का स्थान मुख्य सड़क से थोड़ा दूर होना चाहिए, भूमि समतल व पानी का निकास उचित होना चाहिए और पास में साफ एवं बहता हुआ पानी मधुमक्खी पालन के लिए अति आवश्यक हैं। 

नया लगाया गया बगीचा मधुमक्खी पालन के लिए उचित हैं, ज्यादा घना बगीचा भी गर्मी के मौसम में हवा को आने जाने से रोकता हैं। 

मधुमक्खी पालन के स्थान के चारों तरफ तारबंदी या हेज लगाकर अवांछनीय आने वालो को रोका जाना चाहिए। 

पंक्ति से पंक्ति की दुरी 10 फुट व बक्से से बक्से की दुरी 3 फुट रखें। 

बक्सों को पंक्ति में बिखरे रूप में रखना चाहिए। एक स्थान पर 50 से 100 बक्से तक रखें जा सकते हैं। 

मधुमक्खी पालन किस समय शुरू करें?

मधुमक्खी पालन की शुरुआत 15 अक्टूबर से नवंबर में होनी चाहिए। 

उपयुक्त फूलों की लगातार उपलब्धि होने पर भी मधुमक्खी पालन की शुरुआत की जा सकती हैं। 

प्रचुर मात्रा में मकरंद एवं पराग की आवक होनी आवश्यक होती हैं।

मधुमक्खियों के लिए अधिक मकरंद वाली फसलें और पौधे 

फसलें - तिल, ढेंचा, अरहर, सरसों, अजवायन, धनिया, बरसीम, सूरजमुखी, कासनी, खीरा

वृक्ष - बेर, सफेदा, लीची, मीठी नीम, खेजड़ी, खेर, सहजन, मोसम्बी, संतरा, किन्नौ

जंगली झाड़ी - वनतुलसी, अडूसा, पुंनर्वा 

  • जनवरी - फरवरी          सरसों, धनियां, सौंफ, बरसीम 
  • मार्च - अप्रैल                आंवला, अमरूद, गाजर, सफेदा, कद्दूवर्गीय सब्जियाँ
  • मई - जून                     मक्का, कद्दू वर्गीय सब्जियाँ, अमरूद,तरबूज 
  • जुलाई - अगस्त             मेहंदी, बाजरा, मक्का, तिल, गाजर घास 
  • सितम्बर - अक्टूबर        मेहंदी, बाजरा, मक्का, तिल, अमरूद, बबूल, बेर
  • नवंबर - दिसंबर            सरसों, अजवाइन , बेर 

बाजरे की बाली से मिलने वाले पराग से अधिक खनिज लवण होने की वजह से मधुमक्खियों के परिवार में बहुत अधिक बढ़ोतरी होती हैं। 

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वर्तमान में मधुमक्खियों व अन्य परागण में सहायक कीटों के लिए प्रमुख चुनौतियाँ:

  • विशेष रूप से कीटनाशकों का अंधाधुंद उपयोग निकोटिनॉइड्स का अंधाधुंद उपयोग हो रहा हैं। 
  • प्राकृतिक वास का नुकसान - घोसले, छत्ते के साथ -साथ पौधों की कटाई। 
  • नए कीटों और रोगों की व्यापकता - वोर्रा माइट और उनसे सम्बंधित विषाणु रोगों की अधिकता। 
  • जलवायु परिवर्तन - जिसके कारण फूल सामान्य मौसम से पहले या बाद में खिलते हैं। 
  • एपिस सिराना इण्डिका और एपिस मेलीफेरा की कॉलोनियों का वर्षभर रखरखाव। 
  • एपिस डोरसाटा और पिस फ़्लोरिया मधुमक्खियों की जनसंख्या में तेजी से गिरावट। 

मधुमक्खी पालन को सक्षम और लाभदायक बनाने के लिए देश में निम्न विषयों पर अनुसंधान कार्यों को बढ़ावा दिए जाने की आवश्यकता हैं :

  1. एपिस सिराना के उच्च गुणवत्ता वाली प्रजातियों में चयनात्मक प्रजनन का कार्य किया जाना आवश्यक हैं। 
  2. एपिस मेलीफेरा  में आनुवांशिक गुणवत्ता/विविधता बनाए रखने के लिए वीर्य का आयात एवं कृत्रिम गर्भाधान विधियों पर कार्य करना। 
  3. रॉयल जेली, प्रोपोलिस और पराग उत्पादन के लिए एपिस मेलीफेरा प्रजाति में चयन प्रक्रिया प्रारंभ करना। 
  4. मधुमक्खी को प्रकोपित करने वाले विषाणु रोगों को त्वरित नैदानिक किट विकसित करना हैं। 
  5. मधुमक्खी के किट और रोगों के नियंत्रण के लिए गैर रासायनिक विधियाँ तैयार करना। 
  6. अच्छी गुणवत्ता वाली एपिस सिराना और एपिस मेलीफेरा प्रजाति का प्रजनक स्टॉक मधुमक्खी पालकों को उपलब्ध कराना। 
  7. आधुनिक मधुमक्खी पालन हेतु राज्यों के मास्टर ट्रेनर्स व मधुमक्खी पालकों का प्रशिक्षण। 
  8. मधुमक्खियों में रोग व विषाणु रोगों का तीव्र पता लगाना और उनकी सक्षम नियंत्रण विधियाँ मधुमक्खी पालकों को उपलब्ध कराना हैं। 
  9. देश में सुरक्षित खेती के बढ़ने के साथ - साथ संरक्षित क्षेत्रों में फसलों में परागण प्रबंधन में आने वाली समस्याओं के निदान हेतु स्वदेशी भोरा मधुमक्खियों को पालने व उनके टमाटर, शिमला मिर्च, स्ट्राबेर्री आदि फसलों में परागण पर कार्य करना। 
  10. देश में विभिन्न क्षेत्रों में पालतू व जंगली मधुमक्खियों के वर्ष भर प्रबंधन हेतु परागकर्ता बगीचे लगाकर उस विषय में आम जनता को जागरूक करना। 
  11. योजनाबद्ध तरीके से नगरीय व उपनगरीय क्षेत्रों में विद्यमान बगीचों, पार्कों, यहां तक कि सड़को के किनारे पौधरोपण में ऐसे पेड़, पौधे, झाड़ियों या एक साली फूलों आदि को लगाना जो वर्षभर शहरों में उपस्थित जंगली प्रजातियों को पराग और मकरंद उपलब्ध कराने में सक्षम बनाना हैं।

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मधुमक्खियों कि परागण क्षमता व फसलों में आवश्यकता व इनके द्वारा फसलों में बढ़ने वाली उपज, गुणवत्ता, को मद्देनजर रखते हुए तथा विकसित देशो की भाती यहां भी मधुमक्खी पालन को कृषि में एक सेवा क्षेत्र के रूप में विकसित करने की आवश्यकता हैं। 

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