ढैंचा एक दलहनी फसल है, ढैंचे की खेती हरी खाद और बीज के लिए की जाती है। ढैंचा के हरे पौधे का इस्तेमाल हरी खाद के रूप में किया जाता है। ढैंचा को मुख्य रूप से किसानों द्वारा हरी खाद के रूप में इस्तेमाल करने के लिए खेत में उगाया जाता है।
ढैंचा एक दलहनी फसल होने के कारण भूमि के लिए बहुत ही उपजवर्धक मानी जाती है। ढैंचा के हरे पौधों का इस्तेमाल हरी खाद को तैयार करने के लिए किया जाता है। किसान भाई खेत की उवर्रक क्षमता को बढ़ाने के लिए हरी खाद का इस्तेमाल करते है।
यह भूमि की उवर्रकता को बढ़ाने में काफी प्रभावशाली है। इसकी खेती करने से भी भूमि की उवर्रक क्षमता बढ़ती है, साथ ही पौधे मिट्टी में नाइट्रोजन की पूर्ती करते है। इसका पौधा 10 से 15 फ़ीट की ऊंचाई वाला होता है, तथा पौध विकास के लिए किसी खास तरह की जलवायु की आवश्यकता नहीं होती है।
भारत में ढैंचा की खेती खरीफ के फसल के साथ की जाती है, तथा कई राज्य सरकारों द्वारा ढैंचा की खेती के लिए सब्सिडी भी प्रदान की जा रही है। हमारे इस लेख में आप ढैंचा की फसल के उत्पादन की सम्पूर्ण जानकारी के बारे में जानेंगे।
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ढैंचा की हरी खाद से 22 से 30 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति एकड़ भी मिलती है। इससे भूमि की संरचना सुधरती है। हरी खाद के बाद लगाई जाने वाली फसलों में नाइट्रोजन वाले उर्वरकों की एक तिहाई मात्रा तक कम कर सकते हैं। ढैंचा का बीज हरी खाद के लिए प्रतिवर्ष लगभग 80 प्रतिशत अनुदान पर दिया जाता है।
ढैंचा एक दलहनी फसल है, जिसका वानस्पतिक नाम Sesbania bispinosa है। इसका प्रयोग हरी खाद के रूप में किया जाता है। इसका पौधा 10 से 15 फ़ीट की ऊंचाई वाला होता है। ढैंचा एक दलहनी फसल होने की वजह से धरती में नाइट्रोजन की मात्रा को बढ़ाता है।
ढैंचे के पौधे की जड़ो में गांठे होती है जिनको Nodules बोला जाता है। ये गांठे (नोड्यूल) वायुमंडलीय नाइट्रोजन को मिट्टी में स्थिर करते हैं। जिससे खेत की मिट्टी में नाइट्रोजन की कमी नहीं रहती। जिस खेत में हरी खाद के लिए ढैंचा लगाया जाता है, उस खेत में यूरिया या नाइट्रोजन वाले उर्वरक डालने की ज्यादा आवश्यकता नहीं होती है।
इसके पौधे की छाल से रस्सी तैयार की जाती है, तथा इसे हरी खाद की तरह भी इस्तेमाल करते है। राजस्थान में इसका पौधा इकड़ नाम से जाना जाता है। यह मध्यम कठोर भूमि और बारिश के मौसम में प्रचुरता से उगता है। इसकी खेती मुख्य रूप से खरीफ के मौसम में की जाती है।
अगर ढैंचे की खेती हरी खाद के रूप में की जाती है तो इसे हर प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है। बीज की फसल की अच्छी उपज पाने के लिए इसके लिए काली मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। सामान्य PH मान और जलभराव वाली भूमि में भी इसकी खेती आसानी से की जाती है।
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ढैंचा की खेती खरीफ के मौसम में की जाती है। इसके पौधे को विकसित होने के लिए गर्मी के साथ आर्द्रता की आवश्यकता होती है, इसके साथ ही पौधे को उचित बारिश की भी आवश्यकता होती है।
बुवाई करने से पहले को खेत को अच्छी तरह से जुताई करके तैयार कर ले। खेत की जुताई मिट्टी पलटने वाले हलो से करे, खेत की गहरी जुताई करने के बाद थोड़े समय तक खेत को खाली छोड़ दे।
अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए बुवाई से पहले एक एकड़ में 10 ट्रॉली पुरानी सड़ी गोबर की खाद डालें और अच्छे से हैरो चला कर मिट्टी में मिला दें।
अगर खेत में उचित नमी नहीं है तो बुवाई से पहले पलेव कर दे। पलेव के बाद जब खेत की भूमि सूख जाए तो रोटावेटर या हैरो चला कर खेत को बुवाई के लिए तैयार करें। अगर आपके इलाके में बारिश हुई है और जमीन में नमी है तो बिना पलेवा किए भी फसल की बुवाई की जा सकती है। बुवाई से पहले खेत में पाटा लगा कर खेत को समतल कर लें।
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खेत की तैयारी के बाद बीज की बुवाई करें। बुवाई करने के लिए ड्रील मशीन का इस्तेमाल किया जाता है।इसमें पंक्ति से पंक्ति के मध्य एक फ़ीट की दूरी रखी जाती है, तथा बीजो को 10cm की दूरी के आसपास लगाते है। कई स्थानों पर किसान हाथ से छिड़काव करके भी बीज की बुवाई करते है। इसमें बीजो को समतल खेत में छिड़क दिया जाता है, और फिर कल्टीवेटर से दो हल्की जुताई की जाती है। इस तरह से बीज मिट्टी में मिल जाता है।
दोनों ही विधियों में ढैंचा के बीजो को 3 से 4 cm की गहराई में लगाना चाहिए। हरी खाद की फसल लेने के लिए ढैंचा के बीजो को मई -जून के महीने में लगाते है, और पैदावार लेने के लिए बीजो को खरीफ की फसल के समय बारिश के मौसम में लगाते है। एक एकड़ के खेत में तक़रीबन 10 से 15 किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है।
ढैंचे से हरी खाद प्राप्त करने के लिए ढैंचे को उसी खेत में उगाया जाता है जिसमे हरी खाद तैयार करनी होती है। इसमें दलहनी और गैर दलहनी फसल को उचित समय पर जुताई कर मिट्टी में अपघटन के लिए दबाया जाता है। दलहनी फसलों की जड़े भूमि में सहजीवी जीवाणु का उत्सर्जन करती है, और वातावरण में नाइट्रोजन का दोहन कर मिट्टी में स्थिरता बनाती है।
उत्तर भारत जैसे की हरियाणा, पंजाब और उत्तरप्रदेश में किसान ढैंचा उस खेत में उगते है जहा धान की बुवाई करनी होती है। ढैंचे को उस खेत में मई के अंतिम साप्ताह या जून के महीने में उगाया जाता है। फिर 50 -55 दिनों बाद जब फसल घुटनों से ऊपर हो जाती है तब खड़ी फसल में रोटोवेटर चला कर इसको मिट्टी में मिला दिया जाता है। बाद में ऊपर से दूसरी फसल की बिजाई की जाती है।
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हरियाणा सरकार किसानो को ढैंचा की खेती करने पर प्रोत्साहन के रूप में बीज की खरीद पर 80 फीसदी छूट दे रही है। जिसमे एक किसान अधिकतम 120 kg ढैंचा का बीज प्राप्त कर सकेगा।
राज्य के सभी किसान भाइयो को मेरी फसल मेरा ब्यौरा पोर्टल पर जाकर योजना का लाभ लेने के लिए रजिस्ट्रेशन करवाना होगा। इसमें एक किसान को सिर्फ 120 KG बीज पर छूट मिलेगी। सरकार खरीफ के मौसम में किसानो को ढैंचा फसल के लिए बीज उपलब्ध करवा रही है। योजना के तहत ढैंचा बीज की खरीद पर किसानो को सिर्फ 20% राशि देनी होगी।
ढैंचा की फसल में सिंचाई की ज्यादा आवश्यकता नहीं होती है। क्योकि ये एक खरीफ सीजन की फसल है। खरीफ के मौसम में समय-समय पर बारिश होती रहती है इसलिए इस फसल में ज्यादा सिंचाई नहीं करनी पड़ती है।
अगर आप बीज उत्पादन के लिए फसल ऊगा रहे है तो ढैंचा के पौधों को सामान्य सिंचाई की जरूरत होती है। पैदावार तैयार होने तक पौधों की 4 से 5 बार सिंचाई उपयुक्त होती है। चूंकि ढैंचा के बीजो को नम भूमि में लगाते है, इसलिए पहली सिंचाई तक़रीबन 20 दिन बाद करें। इसके बाद एक माह के अंतराल में दूसरी और तीसरी बार पानी दे।
ढैंचा की खेती में खरपतवार को नष्ट करने के लिए मात्र एक से दो गुड़ाई की जरूरत होती है। जिसमे पहली गुड़ाई बीज बुवाई के तक़रीबन 25 दिन पश्चात् तथा दूसरी गुड़ाई 20 दिन बाद की जाती है।
ढैंचा की फसल में बहुत ही कम रोगों और कीटों का प्रकोप देखने को मिलता है। अगर कई बार संक्रमण हो जाता है तो संक्रमण पौधों की पैदावार को कम कर देता है। इसके कीट का लार्वा पौधों की पत्तियों और शाखाओ को खाकर उन्हें नष्ट कर देता है।
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फसल में किट नियंत्रण करने के लिए उचित कीटनाशक का प्रयोग करें। इस फसल में रोगों का प्रकोप बहुत कम देखने को मिलता है अगर किसी भी रोग के लक्षण दिखाई दें तो उचित कवकनाशी का प्रयोग करके फसल में रोग नियंत्रण किया जा सकता है।
ढैंचा की फसल तक़रीबन 4 से 5 माह में कटाई करने के लिए तैयार हो जाती है। जब इसके पौधों का रंग सुनहरा पीला दिखाई देने लगे तब फलियों की शाखाओ को काट ले, तथा शेष बचे हुए भाग को ईंधन के रूप में उपयोग कर सकते है। इसकी फलियों को धूप में सुखाकर मशीन की सहायता से बीजो को निकाल लेते है, जिसके बाद उन्हें बाजार में बेच देते है। एक एकड़ में लगभग 8 क्विंटल तक बीज की उपज हो जाती है।